सोमवार, 30 मार्च 2020

दिल्ली सरकार ने कक्षा आठ तक के छात्रों को बिना परीक्षा दिए प्रोन्नत करने का फैसला किया


नई दिल्ली, 30 मार्च (एजेंसी)। दिल्ली सरकार ने सोमवार को घोषणा की कि राष्ट्रीय राजधानी में नर्सरी से कक्षा आठ तक के छात्रों को बिना परीक्षा के अगली कक्षा में प्रोन्नत किया जाएगा। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ एक संयुक्त डिजिटल संवाददाता सम्मेलन में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि सरकारी स्कूलों के छात्रों को ‘‘अनुत्तीर्ण नहीं करने की नीति’’ के तहत प्रोन्नत किया जाएगा। सिसोदिया शिक्षा मंत्री भी हैं।
उन्होंने कहा कि उत्तर पूर्वी दिल्ली में हाल ही में हुई हिंसा के कारण कक्षा आठ तक की परीक्षाएं नहीं हो सकीं और उसके बाद कोरोना वायरस का प्रकोप सामने आ गया। उन्होंने कहा कि सरकार ने 12 वीं कक्षा के छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाएं शुरू करने का भी फैसला किया है।
केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली की सीमाओं पर सख्त पहरेदारी शुरू की गयी है ताकि लॉकडाउन अवधि के दौरान दिल्ली में प्रवासी श्रमिकों की आवाजाही पर रोक लगायी जा सके। उन्होंने कहा कि प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों तक ले जाने के लिए बसों की अफवाह के बाद आनंद विहार की सीमा से लगे कौशाम्बी में बड़ी संख्या में लोगों के जमा होने से चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई थी। उन्होंने कहा कि स्थिति अब नियंत्रण में है।
केजरीवाल ने कहा कि कुछ लोग अब भी दिल्ली में घुसने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन शहर के सीमावर्ती इलाकों में गश्त तेज कर दी गई है। उन्होंने कहा कि पुलिस और नागरिक प्रशासन के अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए हैं कि लोग सड़कों पर न निकलें। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार उन जरूरतमंदों को राशन देने के लिए कार्य कर रही है जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उचित मूल्य की दुकानों के मालिक किसी भी तरह की गड़बड़ी में पकड़े गए तो उन्हें सख्त सजा दी जाएगी।

शनिवार, 21 मार्च 2020

कफन: मुंशी प्रेमचंद | Munshi premchand story kafan in hindi





कफन: मुंशी प्रेमचंद Munshi premchand story kafan in hindi

झोंपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीवी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देनेवाली आवाज निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अन्धकार में लय हो गया था।
घीसू ने कहा—‘‘मालूम होता है, बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख तो आ।’’
माधव चिढ़कर बोला—‘‘मरना ही है तो जल्दी मर क्यों नहीं जाती ? देखकर क्या करूँ ?’’
‘‘तू बड़ा बेदर्द है बे ! साल-भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई !’’
‘‘तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता।’’
चमारों का कुनबा था और सारे गाँव में बदनाम। घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम । माधव इतना काम-चोर था कि आध घण्टे काम करता तो घंटे-भर चिलम पीता। इसलिए उन्हें कहीं मजदूरी नहीं मिलती थी। घर में मुट्ठी-भर भी अनाज मौजूद हो, तो उनके लिए काम करने की कसम थी। जब दो-चार फाके हो जाते तो घीसू पेड़ पर चढ़कर लकड़ियाँ तोड़ लाता और माधव बाजार से बेच लाता। और जब तक वह पैसे रहते, दोनों इधर-उधर मारे-मारे फिरते। जब फाके की नौबत आ जाती, तो फिर लकड़ियाँ तोड़ते या मजदूरी तलाश करते। गाँव में काम की कमी न थी। किसानों का गाँव था, मेहनती आदमी के लिए पचास काम थे। मगर इन दोनों को उसी वक्त बुलाते, जब दो आदमियों से एक का काम पाकर भी सन्तोष कर लेने के सिवा और कोई चारा न होता।

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श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित | Shri hanuman chalisa in hindi lyrics with meaning




Hanuman chalisa in hindi lyrics with meaning : भगवान शिव (Lord Shiv) के 11वें रुद्रावतार भगवान हनुमान (Hanuman Ji) जी ऐसे देवता है जो कलियुग में भी धरती पर विराजमान हैं। श्रीराम (Shri Ram) भक्त हनुमान जी को माता सीता ने अमरता का वरदान दिया था। कलियुग में हनुमान (Hanuman) अकेले ऐसे देव हैं जिनकी पूजा अर्चना से वे बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों के सारे संकट दूर कर देते हैं। हनुमान जी  को प्रसन्न करने का एकमात्र उपाय है हनुमान चालीसा (Hanuman chalisa) हनुमान जी की आरती (Hanuman aarti ) बजरंग बाण (Bajrang Baan), व संकटमोचन हनुमाष्टक (Sankat mochan hanuman ashtak) का पाठ, जो भक्त नियमित रूप से हनुमान चालीसा (Hanuman chalisa) का पाठ करता है उसे भूत प्रेत और बुरी शक्तियां परेशान नहीं करती और उसकी हर प्रकार की मनोकामना पूर्ण हो जाती है। खुलासा डॉट इन में हम हनुमान जी के भक्तों के लिए लाएं हैं हनुमान चालीसा और उसके फायदे (Benefits of hanuman chalisa)।




वासना की कडि़यां : मुंशी प्रेमचंद | Vasna ki kadiya : Premchand




वासना की कडि़यां : मुंशी प्रेमचंद | Vasna ki kadiya : Premchand

बहादुर, भाग्यशाली क़ासिम मुलतान की लड़ाई जीतकर घमंड के नशे से चूर चला आता था। शाम हो गयी थी, लश्कर के लोग आरामगाह की तलाश मे नज़रें दौड़ाते थे, लेकिन क़ासिम को अपने नामदार मालिक की ख़िदमत में पहुंचन का शौक उड़ाये लिये आता था। उन तैयारियों का ख़याल करके जो उसके स्वागत के लिए दिल्ली में की गयी होंगी, उसका दिल उमंगो से भरपूर हो रहा था। सड़कें बन्दनवारों और झंडियों से सजी होंगी, चौराहों पर नौबतखाने अपना सुहाना राग अलापेंगे, ज्योंहि मैं सरे शहर  के अन्दर दाखिल हूँगा। शहर में शोर मच जाएगा, तोपें  अगवानी के लिए जोर-शोर से अपनी आवाजें बूलंद करेंगी। हवेलियों के झरोखों पर शहर की चांद जैसी सुन्दर स्त्रियां ऑखें  गड़ाकर मुझे देखेंगी और मुझ पर फूलों की बारिश करेंगी। जड़ाऊ हौदों पर दरबार के लोग मेरी अगवानी को आयेंगे। इस शान से दीवाने खास तक जाने के बद जब मैं अपने हुजुर की ख़िदमत में पहुँचूँगा तो वह बॉँहे खोले हुए मुझे सीने से लगाने के लिए उठेंगे और मैं बड़े आदर से उनके पैरों को चूम लूंगा। आह, वह शुभ घड़ी कब आयेगी? क़ासिम मतवाला हो गया, उसने अपने चाव की बेसुधी में घोड़े को एड़ लगायी।
कासिम लश्कर के पीछे था। घोड़ा एड़ लगाते ही आगे बढा, कैदियों का झुण्ड पीछे छूट गया। घायल सिपाहियों की डोलियां पीछे छूटीं, सवारों का दस्ता पीछे रहा। सवारों के आगे मुलतान के राजा की बेगमों और मैं उन्हें और शहजादियों की पनसें और सुखपाल थे। इन सवारियों के आगे-पीछे हथियारबन्द ख्व़ाजासराओं की एक बड़ी जमात थी। क़ासिम  अपने रौ में घोड़ा बढाये चला आता था। यकायक उसे एक सजी हुई पालकी में से दो आंखें झांकती हुई नजर आयीं। क्रासिंग ठिठक गया, उसे मालूम हुआ कि मेरे हाथों के तोते उड़ गये, उसे अपने दिल में एक कंपकंपी, एक कमजोरी और बुद्धि पर एक उन्माद-सा  अनुभव हुआ। उसका आसन खुद-ब-खुद ढ़ीला पड़ गया। तनी हुई गर्दन झुक गयी। नजरें नीची हुईं। वह दोनों आंखें दो चमकते और नाचते हुए सितारों की तरह, जिनमें जादू का-सा आकर्षण था, उसके आदिल के गोशे में बैठीं। वह जिधर ताकता था वहीं दोनों उमंग की रोशनी से चमकते हुए तारे नजर आते थे। उसे बर्छी नहीं लगी, कटार नहीं लगी, किसी ने उस पर जादू नहीं किया, मंतर नहीं किया, नहीं उसे अपने दिल में इस वक्त एक मजेदार बेसुधी, दर्द की एक लज्जत, मीठी-मीठी-सी एक कैफ्रियत और एक सुहानी चुभन से भरी हुई रोने की-सी हालत महसूस हो रही थी। उसका रोने को जी चाहता था, किसी दर्द की पुकार सुनकर शायद वह रो पड़ता, बेताब  हो जाता। उसका दर्द का एहसास जाग उठा था जो इश्क की पहली मंजिल है।

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Robot information and essay in hindi: आपने शायद रोबोट (Robots) को देखा हो, फिल्मों में या असल जिंदगी में। रोबोट (Robot) के बारे में तरह तरह की जानकारियां भी तरह तरह की मैगजीन और अखबारों में पढ़ी होंगी, पर क्या आप जानते हैं कि रोबोट (Robot) कहां से आया और वास्तव में इसका इतिहास क्या है, चलिए आज खुलासा डॉट इन में रोबोट से जुड़े अनेक प्रकार के तथ्य (Robot Information in hindi) हम आपको विस्तार से बताएंगे।

Robot definition (रोबोट की परिभाषा)

आप को जानकर हैरानी होगी रोबोट (Robot)  को लेकर अभी तक कोई सटीक परिभाषा (Definition ) ईजाद नहीं हुई है। इसके कार्य, संरचना और कई अन्य चीजों में इतनी विविधता पाई जाती है कि  रोबोट (Robot) को परिभाषित करना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन कुछ साइंस पत्रिकाओं और वेबसाइट के अनुसार रोबोट (Robot) एक प्रकार की मशीन (machine) है जो एक या एक से अधिक कार्यों को तेज गति और सटीक तरह से स्वचालित (automatic) रूप से कर सकती है।



रोबोट के बारे में ऐसी आश्चर्यजनक बातें जिन्हें जानकर आप हैरान रह जाएंगे information about robot in hindi language
रोबोट जो घर के साफ सफाई और रखरखाव के कार्य में प्रयोग होते हैं

उदाहरण के तौर पर घरेलू रोबोट (Home robots) जो घर के साफ सफाई और रखरखाव के कार्य में प्रयोग होते हैं और इनसे आदमी के जीवन का काम बहुत आसान हुआ है। विदेशों में यह घरों की साफ-सफाई, भूकंप के बाद मलबे में दबे इंसानों को ढूंढने का काम और कारखानों में कई ऐसे कामों को अंजाम देता है जो हैरान कर देने वाले होते हैं।

रोबोट का पौराणिक इतिहास (History of robots)

आपको जानकर हैरानी होगी कई प्राचीन कथाओं और पौराणिक धर्मग्रंथों में भी रोबोट (Robot) जैसी चीजों का जिक्र मिलता है। यूनान के देवता हिफैस्टास के द्वारा बनाए गए यांत्रिक दास और नोरसे की कथाओं में मिट्टी के बनाए हुए दानव के उदाहरण आजकल के रोबोट (Robot) से काफी मिलते जुलते हैं।
अगर भारत की बात करें तो रामायण में भी रोबोट (Robot) से मिलती जुलती संरचना का उदाहरण मिलता है। जैसे जब रावण वध के बाद श्रीराम जी अयोध्या वापस आए और उन्होंने सीता को वनवास दिया तो सीता जी महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में रहीं। एक दिन जब सीता जी किसी काम से बाहर गईं तो अपने पुत्र लव को साथ ले गईं। महर्षि वाल्मीकि ने जब देखा कि आश्रम में लव उपस्थित नहीं है तो उन्हें बड़ी चिंता हुई। उन्हें लगा कि लव को शायद कोई जंगली जानवर उठा कर ले गया है और ऐसे में अगर सीता के लौटने पर उसे लव नहीं मिला तो वह व्याकुल हो जाएगी। इसी चिंता के कारण महर्षि वाल्मीकि ने कुश से एक नए बालक का निर्माण किया जो हूबहु लव की तरह दिखाई देता था। बाद में सीता के आने पर उस बालक का नाम कुश रखा गया।
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बड़े भाई साहब – मुंशी प्रेमचंद की कहानी | bade bhai sahab premchand story



मेरे भाई साहब मुझसे पॉँच साल बडे थे, लेकिन तीन दरजे आगे। उन्‍होने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैने शुरू किया; लेकिन तालीम जैसे महत्‍व के मामले में वह जल्‍दीबाजी से काम लेना पसंद न करते थे। इस भवन कि बुनियाद खूब मजबूत डालना चाहते थे जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे। कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्‍ता न हो, तो मकान कैसे पाएदार बने।
मैं छोटा था, वह बडे थे। मेरी उम्र नौ साल कि,वह चौदह साल ‍के थे। उन्‍हें मेरी तम्‍बीह और निगरानी का पूरा जन्‍मसिद्ध अधिकार था। और मेरी शालीनता इसी में थी कि उनके हुक्‍म को कानून समझूँ।
वह स्‍वभाव से बडे अघ्‍ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कापी पर, कभी किताब के हाशियों पर चिडियों, कुत्‍तों, बल्लियो की तस्‍वीरें बनाया करते थें। कभी-कभी एक ही नाम या शब्‍द या वाक्‍य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुन्‍दर अक्षर से नकल करते। कभी ऐसी शब्‍द-रचना करते, जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्‍य! मसलन एक बार उनकी कापी पर मैने यह इबारत देखी-स्‍पेशल, अमीना, भाइयों-भाइयों, दर-असल, भाई-भाई, राघेश्‍याम, श्रीयुत राघेश्‍याम, एक घंटे तक—इसके बाद एक आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने चेष्‍टा की‍ कि इस पहेली का कोई अर्थ निकालूँ; लेकिन असफल रहा और उसने पूछने का साहस न हुआ। वह नवी जमात में थे, मैं पाँचवी में। उनकि रचनाओ को समझना मेरे लिए छोटा मुंह बडी बात थी। 

बड़े घर की बेटी : प्रेमचंद की कहानी | Bade ghar ki beti by munshi premchand



Bade Ghar ki Beti (बड़े घर की बेटी) हिंदी के प्रख्यात कथाकार मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) की कहानी है। इस कहानी में प्रेमचंद जी ने संयुक्त परिवारों में होने वाली कलहों, समस्याओं और जरा जरा सी बातों के बतगंड बन जाने को बड़ी सुंदरता से दर्शाया है। बड़े घर की बेटी (Bade Ghar ki Beti) कहानी में मुंशीप्रेमचंद ने बड़े ही सुंदर ढंग से बड़े परिवारों के मनोविज्ञान को दर्शाया है। गौरीपुर गांव के जमींदार है बेनीमाधव। उनके दो पुत्र है श्रीकंठ और लालबिहारी। उनके बड़े पुत्र की पत्नी है आनंदी जिसकी बेनीमाधव के छोटे पुत्र यानि आनंदी के देवर लालबिहारी से कुछ कहासुनी हो जाती है। क्रोध में लालबिहारी आनंदी पर अपने खड़ाऊ से प्रहार कर देते हैं और फिर क्या है यह बात परिवार में क्लेश और झगड़े का रूप ले लेती है। प्रेमचंद ने इस कहानी (बड़े घर की बेटी) में एक आदर्श की स्थापना की है कि कैसे आनंदी अपना क्रोध भूलकर परिवार में आपसी सौहार्द और सहनशीलता से टूटते परिवार को बचाया है। आइए  खुलासा डॉट इन  के कहानी सेंगमेंट में पढ़िए प्रेमचंद की कहानियां (Premchand ki kahaniya)  मुंशी प्रेमचंद की कहानी बड़े घर की बेटी (Bade Ghar ki beti)।पूरी कहानी पढ़िए खुलासा डॉट इन पर

Karmveer Poem -Ayodhya Singh Upadhyay ~ कर्मवीर - अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध



Karmveer Poem -Ayodhya Singh Upadhyay ~ कर्मवीर - अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध


देख कर बाधा विविध, बहु विघ्न घबराते नहीं।
रह भरोसे भाग के दुख भोग पछताते नहीं।
काम कितना ही कठिन हो किन्तु उकताते नहीं।
भीड़ में चंचल बने जो वीर दिखलाते नहीं।
हो गये एक आन में उनके बुरे दिन भी भले।
सब जगह सब काल में वे ही मिले फूले फले।1।
आज करना है जिसे करते उसे हैं आज ही।
सोचते कहते हैं जो कुछ कर दिखाते हैं वही।
मानते जी की हैं सुनते हैं सदा सब की कही।
जो मदद करते हैं अपनी इस जगत में आप ही।
भूल कर वे दूसरों का मुँह कभी तकते नहीं।
कौन ऐसा काम है वे कर जिसे सकते नहीं।2।
जो कभी अपने समय को यों बिताते हैं नहीं।
काम करने की जगह बातें बनाते हैं नहीं।
आजकल करते हुए जो दिन गँवाते हैं नहीं।
यत्न करने में कभी जो जी चुराते हैं नहीं।
बात है वह कौन जो होती नहीं उनके किए।
वे नमूना आप बन जाते हैं औरों के लिए।3।
व्योम को छूते हुए दुर्गम पहाड़ों के शिखर।
वे घने जंगल जहाँ रहता है तम आठों पहर।
गर्जते जल-राशि की उठती हुई ऊँची लहर।
आग की भयदायिनी फैली दिशाओं में लवर।
ये कँपा सकतीं कभी जिसके कलेजे को नहीं।
भूलकर भी वह नहीं नाकाम रहता है कहीं।4।
चिलचिलाती धूप को जो चाँदनी देवें बना।
काम पड़ने पर करें जो शेर का भी सामना।
जो कि हँस हँस के चबा लेते हैं लोहे का चना।
''है कठिन कुछ भी नहीं'' जिनके है जी में यह ठना।
कोस कितने ही चलें पर वे कभी थकते नहीं।
कौन सी है गाँठ जिसको खोल वे सकते नहीं।5।
ठीकरी को वे बना देते हैं सोने की डली।
रेग को करके दिखा देते हैं वे सुन्दर खली।
वे बबूलों में लगा देते हैं चंपे की कली।
काक को भी वे सिखा देते हैं कोकिल-काकली।
ऊसरों में हैं खिला देते अनूठे वे कमल।
वे लगा देते हैं उकठे काठ में भी फूल फल।6।
काम को आरंभ करके यों नहीं जो छोड़ते।
सामना करके नहीं जो भूल कर मुँह मोड़ते।
जो गगन के फूल बातों से वृथा नहिं तोड़ते।
संपदा मन से करोड़ों की नहीं जो जोड़ते।
बन गया हीरा उन्हीं के हाथ से है कारबन।
काँच को करके दिखा देते हैं वे उज्ज्वल रतन।7।
पर्वतों को काटकर सड़कें बना देते हैं वे।
सैकड़ों मरुभूमि में नदियाँ बहा देते हैं वे।
गर्भ में जल-राशि के बेड़ा चला देते हैं वे।
जंगलों में भी महा-मंगल रचा देते हैं वे।
भेद नभ तल का उन्होंने है बहुत बतला दिया।
है उन्होंने ही निकाली तार तार सारी क्रिया।8।
कार्य्य-थल को वे कभी नहिं पूछते 'वह है कहाँ'।
कर दिखाते हैं असंभव को वही संभव यहाँ।
उलझनें आकर उन्हें पड़ती हैं जितनी ही जहाँ।
वे दिखाते हैं नया उत्साह उतना ही वहाँ।
डाल देते हैं विरोधी सैकड़ों ही अड़चनें।
वे जगह से काम अपना ठीक करके ही टलें।9।
जो रुकावट डाल कर होवे कोई पर्वत खड़ा।
तो उसे देते हैं अपनी युक्तियों से वे उड़ा।
बीच में पड़कर जलधि जो काम देवे गड़बड़ा।
तो बना देंगे उसे वे क्षुद्र पानी का घड़ा।
बन ख्रगालेंगे करेंगे व्योम में बाजीगरी।
कुछ अजब धुन काम के करने की उनमें है भरी।10।
सब तरह से आज जितने देश हैं फूले फले।
बुध्दि, विद्या, धान, विभव के हैं जहाँ डेरे डले।
वे बनाने से उन्हीं के बन गये इतने भले।
वे सभी हैं हाथ से ऐसे सपूतों के पले।
लोग जब ऐसे समय पाकर जनम लेंगे कभी।
देश की औ जाति की होगी भलाई भी तभी।

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

बाँटी हो जिसने तीरगी/श्यामल सुमन


बाँटी हो जिसने तीरगी उसकी है बन्दगी
हर रोज नयी बात सिखाती है जिन्दगी
क्या फर्क रहनुमा और कातिल में है यारो
हो सामने दोनों तो लजाती है जिन्दगी
लो छिन गए खिलौने बचपन भी लुट गया
यों बोझ किताबों की दबाती है जिन्दगी
है वोट अपनी लाठी क्यों भैंस है उनकी
क्या चाल सियासत की पढाती है जिन्दगी
गिनती में सिमटी औरत पर होश है किसे
महिला दिवस मना के बढाती है जिन्दगी
किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी
देखो सुमन की खुदकुशी टूटा जो डाल से
रंगीनियाँ कागज की सजाती है जिन्दगी

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची

तीरगी चांद के ज़ीने से सहर तक पहुँची
ज़ुल्फ़ कन्धे से जो सरकी तो कमर तक पहुँची
मैंने पूछा था कि ये हाथ में पत्थर क्यों है
बात जब आगे बढी़ तो मेरे सर तक पहुँची
मैं तो सोया था मगर बारहा तुझ से मिलने
जिस्म से आँख निकल कर तेरे घर तक पहुँची
तुम तो सूरज के पुजारी हो तुम्हे क्या मालुम
रात किस हाल में कट-कट के सहर तक पहुँची
एक शब ऐसी भी गुजरी है खयालों में तेरे
आहटें जज़्ब किये रात सहर तक पहुँची

दिल्ली सरकार ने कक्षा आठ तक के छात्रों को बिना परीक्षा दिए प्रोन्नत करने का फैसला किया

नई दिल्ली, 30 मार्च (एजेंसी)।  दिल्ली सरकार ने सोमवार को घोषणा की कि राष्ट्रीय राजधानी में नर्सरी से कक्षा आठ तक के छात्रों को बिना पर...